Tuesday, October 3, 2023
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क्या है हठ योग

नियमित योग के अभ्यास से मिलने वाले अनेकों लाभों के कारण योग विद्या आज समूचे संसार में अपनायी जा रही है. प्रारम्भ से ही योग विद्या एक बृहद विषय रहा है जहाँ ऋषियों-योगिओं ने योग की कई अर्थ और परिभाषाएं दीं. प्राचीनकाल में योग विद्या के अनेक भेद बतलाये गए हैं जैसे – ज्ञान योग, कर्म योग, भक्ति योग, राज योग, मन्त्र योग, लय योग, हठ योग. 

हठयोग विश्व की प्राचीनतम प्रणालियों में से एक है. योग विद्या की विभिन्न परम्पराओं में हठयोग का महत्वपूर्ण स्थान है, इसका अभ्यास योगियों द्वारा शारीरिक और मानसिक विकास को बेहतर बनाने के लिए किया जाता था जोकि समय के साथ आम जन मानस में भी लोकप्रिय हो गया. आज हम हठ योग के बारें में ही विस्तार से जानेंगे

हठयोग की उत्पत्ति (Origin of hatha yoga)

“श्री आदिनाथाय नमोऽस्तु तस्मै येनोपदिष्टा हठयोगविद्या। विभ्राजते प्रोन्नतराजयोगमारोदमिच्छोरधिरोहिणीव॥”

अर्थ – उन सर्वशक्तिमान आदिनाथ को नमन है जिन्होंने इस संसार को हठयोग की विद्या दी. जो राजयोग के उच्चतम शिखर पर पहुँचने के लिए सेतु के सामान है. इस मंत्र सूत्र में सर्वशक्ति आदिनाथ भगवान् शिव को कहा गया है. ऐसी मान्यता है की हठयोग की उत्पत्ति तंत्र विद्या से हुयी है और भगवन आदिनाथ शिव ही इन विद्याओं (तंत्र और हठयोग) के प्रणेता थे. हठयोग के बारें में भगवान शिव ने माता पार्वती को सर्वप्रथम बतलाया था जो तंत्र ग्रंथों में शिव-पार्वती संवाद के रूप में मिलता है. 

   एक मान्यता के अनुसार १४वी और १५वी सदी में तंत्र विद्या अपने चरम पर थी और इसके साथ ही लोग इस विद्या का उपयोग गलत कामों को करने के लिए करने लगे. जिसमे परिणाम स्वरुप जब समाज में अपराध बढ़ने लगा और शांति भांग होने लगी तब तत्कालीन नाथ सम्प्रदाय के आचार्य मतस्येंद्र नाथ और गौरक्षनाथ ने इस विद्या के विकृत स्वरुप को बदलकर हठयोग विद्या को जनसामान्य तब पहुंचाया जिसे राजयोग के एक अंग के रूप में स्वीकार किया गया. 

हठयोग का परिचय (introduction to hatha yoga) –

अलग अलग विद्वानों ने हठयोग को भिन्न -भिन्न परिभाषाओं के जरिये समझाया है. एक परिभाषा के अनुसार ‘हकार’ का अर्थ  प्राणवायु और ‘ठकार’ का अर्थ अपान वायु है. हठयोग के अंतर्गत हठ शब्द में ‘ह’ का अभिप्राय सूर्य से और ‘ठ’ का अभिप्राय चन्द्रमा से है. यह हमारे मानव शरीर के अन्दर विधमान नाड़ियों का प्रतीकात्मक रूप माना जाता है. सूर्य और चंद्रमा के अलावा हठयोग में ‘ह’ और ‘ठ’ को अन्य प्रतीकों के रूप में भी प्रयोग किया जाता है.

 ह                                                  ठ  
     शिव                                                  शक्ति 
    पिंगला नाड़ी                                        इड़ा नाड़ी 
    ग्रीष्म                                                  शीत
    पुरुष                                                  स्त्री 
    दिन                                                   रात 
    तमस                                                  रजस
    पित्त                                                    कफ 

हठयोग के उद्देश्य और लाभ (benefits of hatha yoga)

शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक विकारों को दूर करने के लिए योग की अनेकों तकनीकों का प्रयोग किया जाता है इसी तरह हठयोग से भी साधक को ढेर सारे लाभ प्राप्त होते हैं..

१. राजयोग को सफलतापूर्वक प्राप्त करने के लिए हठयोग का अभ्यास किया जाता है.

२.नियमित रूप से हठयोग का अभ्यास करने से शरीर सुचारु रूप से कार्य करता है, शरीर में तंदरुस्ती का संचार होता है.

३. शरीर को स्वस्थ रखने और रोगो से दूर रखने में हाथयोग बेहद प्रभावकारी सिद्ध होता है.

४. हठयोग का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य साधक के शरीर के साथ चित्त को भी निर्मल करते हुए व्यवहार को परिश्रित बनाना होता है.

५. हठयोग के अभ्यास से साधक का सर्वांगीण विकास संभव हो पाता है.

६. यह पंच क्लेशों यथा – अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष, अभिनिवेश को दूर करता है.

७. हठयोग के नियमित अभ्यास से कुंडलिनी जागरण के माध्यम से साधक को योग के चार्म लक्ष्यों की प्राप्ति होती है.

८. हठयोग की साधना से साधक को शक्ति, साहस, शांति, निर्मलता और पूर्णता की प्राप्ति होती है.

हठयोग के अंग- (Practice of Hatha Yoga)

हठयोग के ग्रन्थ घेरड़ संहिता में हठयोग की साधना के लिए सात अभ्यास बतलायें गए हैं इन अभ्यासों के साथ जब हठयोगी अंतिम चरण समाधी तक पहुंच जाता है तब इसे हठयोग की साधना कहा जाता है.

१. षट्कर्म- हठयोग विद्या में षट्कर्म का आशय शाररें में छह शुद्धि की क्रिया से है. जो क्रमशः धौति, वस्ति, नेति, नैली, त्राटक और कपालभाति है . इन क्रियाओं से शरीर के पंच तव और तीनों दोष संतुलित रहते हैं.

२. आसान- शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विभिन्न प्रकार के असानो को नियमित किया जाता है. इससे शरीर रोगो से दूर, चुस्त एवं पुष्ट होता है.

३. मुद्रा – घेरड़ सहिंता में वर्णित है “मुद्रया स्थितः चैव” अर्थात मुद्रा से चित्त स्थिर हो जाता है और चंचलता दूर होती है.

४.प्रत्याहार – प्रत्याहार के अंतरगत साधक अपनी इन्द्रियों को साधने का प्रयास करते हुए उन्हें अंतर्मुखी बनाता है.

५. प्राणायाम – प्राणायाम का अर्थ होता है सांसों पर नियंत्रण रखते हुए अपने प्राणों में नियंत्रण रखना. इससे नाड़ियां शुद्ध होती है और उमंग-उत्साह का संचार होता है.

६. ध्यान- इस अभ्यास में ध्यान को साधा जाता है जिससे मानसिक शक्तियों का विकास होता है और एकाग्रता में वृद्धि होती है.

७. समाधी- हठयोग साधना का अंतिम चरण समाधी का होता है इस स्थिति में पहुंचने पर साधक को चिर आनंदस्वरूप की प्राप्ति हो जाती है. 

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