Monday, March 27, 2023
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कुछ बाते जो केवल स्पिरिचुअल लोग समझ सकते हैं

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आज़ के समय में लोगो की कॉमन प्रॉब्लम क्या है? यही कि मैं खुश क्यों नही हूं? क्यों मुझे हमेशा तनाव रहता है? सारी समस्याएं मेरी ही लाइफ में क्यों है?

एकदम सही बात है। पर दूसरी और हम कुछ ऐसे व्यक्ति भी देखते हैं जो हर समय प्रसन्न चित्त रहते हुए अपना जीवन शान्ति से बिता रहे हैं। ऐसा लगता है कि उनकी लाइफ में स्ट्रगल ही नही है, और अगर है तो बहुत ही कम।

स्पिरिचुअल लोग

Spirituality के बिना जीवन सच में काफी दुखदाई है और हर पल मुश्किल लगता है और दूसरी और Spirituality को प्रैक्टिस करने वाले लोगो के लिए जीवन एकदम शांत और खूबसूरत तरीके से व्यतीत होता है। आइए जानते हैं कुछ ऐसे सीक्रेट्स जो व्यक्ति spiritual होने के बाद ही जान पाता है और पाता है की जीवन में कुछ चीजें जैसे बाकी लोग देख रहे हैं, reality में वो काफ़ी अलग हैं।

Physical world सब कुछ नही है 

आज के समय में हर किसी को, किसी न किसी बात का मोह है। ज्यादातर लोगों के लिए ये फाइनेंशियल हो सकता है, किसी के लिए पॉवर हो सकता है या किसी के लिए fame।

पर ह्यूमन ब्रेन इस तरह डिजाइन है कि इसकी लालसा कभी कम नहीं होती। जब जो मिल जाता है उसके बाद आगे की चाह हो जाती है। उदाहरण के तौर पर आपने ऑनलाइन कोई अपनी favourite phone ऑर्डर किया, इसके बाद उसकी डिलीवरी का इंतजार बड़ा मुश्किल लगता है और लगता है कि वह फोन हाथ में आते ही मन excitement में एकदम पागल ही हो जाएगा, पर हाथ में आने के कुछ देर बाद उसका एक्साइटमेंट कम हो जाता है और एक हफ्ते बाद तो काफी कम हो जाता है और आपका मन अब किसी दूसरी वस्तु की चाह करने लगता है।

Physical world सब कुछ नही है 

इसी को माया कहा गया है, मानव का मन असीमित इच्छाओं से भरा हुआ है बस आज कुछ और desire है, कल कुछ और होगी। आज शायद आपको लगे कि मेरी लाइफ़ में कहीं से 50 लाख रुपए आ जाए तो अपनी जैसी बेकार जॉब कभी नहीं करूंगा और मेरी लाइफ sorted हो जायेगी। पर जिसके पास करोड़ो हैं, वो बिजनेसमैन भी शांति से नही बैठा है, बल्कि और ज्यादा पैसा कमाने का तरीका सोच सोच कर परेशान हो रहा है।

आशय यह है कि इच्छाओं की कोई सीमा नही है, और यह फिजिकल वर्ल्ड माया से भरा हुआ है।

फिजिकल चीजों के लिए प्रयास करना गलत नही है। पर हमारे सभी सवालों के जवाब इस रास्ते पर नही मिल पाएंगे, इसके लिए आपको स्पिरिचुअल पाथ पर ही जाना होगा। वहीं पर आपको आपके सभी प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हैं।

Spirituality आपके चारो और विद्यमान है 

ऐसा बोला जाता हैं कि spirituality को experience करना मुश्किल काम है, सही बात है। पर इतना भी नही कि यह संभव न हो पाए। अगर आप से पूछा जाए कि आप कौन हैं, आपका अस्तित्व क्या है? तो, हो सकता है, आप अपना नाम बताए या अपने शरीर को इंगित करते हुए बताए कि मै यह हूं। पर वास्तव में आप एक शरीर नही हैं क्योंकि शरीर आपने इस प्रकृति से इकट्ठा किया है। जो खाया, जिस हवा में सांस ली, जो पिया वह आप हो गए। तो जो आपने इकट्ठा किया, आप वो तो नही हो सकते। इकट्ठा तो आपने धन, संपति भी की है, क्या आप वह हैं? उसी प्रकार आप यह शरीर भी नहीं हैं।

Spirituality आपके चारो और

पर यह जानने के लिए, अपने आपको इस शरीर और मन के बाहर से देखने के लिए आपको ध्यान करना जरूरी है। जब आप इस शरीर से बाहर होकर spiritual हो जाएंगे तो आप जानेंगे कि spirituality तो हर जगह विद्यमान है बस जानने की आवश्यकता है ।

दुखो का कारण, spirituality को न समझ पाना 

वास्तविकता के ज्ञान का अभाव ही दुखो का कारण था, यह बात एक spiritual व्यक्ति जान जाता है। फिजिकल संसार में हमने बहुत सारे chaos कर रखे हैं और हम लोगो का psychological ड्रामा काफी बिखरा पड़ा है। हम लोगो से पहले करोड़ो लोग, बैक्टीरिया, जाति आई और चली गई और हम इतने बड़े ब्रह्मांड में एक बुलबुले के समान हैं जो आज बना है कल फूट जायेगा, पर हमने इसे बहुत seriously लिया हुआ है। आज के समय में ‘मैं’ शब्द बहुत बड़ा हो है, यही दुखो का मूल कारण है।

दुखो का कारण

परंतु एक spiritual व्यक्ति इस बात को भली भांति समझता है।

हमारी फिजिकल बॉडी एक माध्यम है इन सब स्पिरिचुअल प्रोसेस को समझने का, जिसे हम एक conscious mind से समझ सकते हैं। हम नेचुरल रूप से स्पिरिचुअल ही हैं बस वह भाव कहीं खो गया है।

समय है उसे खोजने का और वापस से आध्यात्मिक हो जाने का ।

वात पित्त कफ दोष क्या है? कैसे कंट्रोल करें?

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अपनी रोजमर्रा की lifestyle में हम जो भी खाद्यपदार्थ (food ) खाते है उनकी अपनी-अपनी तासीर होती है जिसमे कुछ ठन्डे प्रवत्ति के होते है, कुछ गर्म प्रवत्ति के जबकि कुछ सामान्य प्रवत्ति के। ये हमारी शरीर में जाकर अपनी तासीर के अनुसार ही हमारी body को effect  करते है। उदाहरण के लिए जैसे जब हम संतरा खाते है तो उसके तासीर ठंडी होती है इसलिए वह हमारी बॉडी में ठंडक प्रदान करती है। वहीँ जला-भुना खाने से हमारे शरीर में heat (ऊष्मा) पैदा होती है क्यूंकि उसकी तासीर गर्म होती है। ठीक इसी तरह आयुर्वेद के मुताबिक मानव शरीर की भी तीन तासीर होती है जिन्हे वात, पित्त और कफ के नाम से हम जानते है। इन्हे त्रिदोष भी कहा जाता है।

वात- पित्त- कफ दोष

त्रिदोषो का पञ्च तंत्व से सम्बन्ध 

ऐसा कहा जाता है की ये दोष हमारे शरीर के पांच तत्वों (five elements) – पृथ्वी, जल, भूमि, आकाश, वायु से बनते है। आयुर्वेद के अनुसार जब यह दोष हमारी बॉडी में संतुलित अवस्था (balanced way) में होते है तो हमारा शरीर स्वस्थ होता है लेकिन जब अपनी आहार (food), जीवन शैली (lifestyle), के कारण कोई भी दोष अपनी मात्रा से ज्यादा या कम हो जाता है तो हमारे शरीर में विकार पैदा हो जाते है और हम बीमार हो जाते हैं.

त्रिदोषो का पञ्च तंत्व से सम्बन्ध

लेकिन आयुर्वेद का सिद्धांत ही हैं कि ‘रोगी होकर चिकित्सा करने से अच्छा हैं कि रोगी हुआ ही न जाए इस बारे में आयुर्वेद की के ग्रंथों में कहा गया हैं कि –

  ‘‘वमनं कफनाशाय वातनाशाय मर्दनम्। शयनं पित्तनाशाय ज्वरनाशाय लघ्डनम्।।

 अर्थात् कफनाश करने के लिए वमन (उलटी), वातरोग में मर्दन (मालिश), पित्त नाश के शयन तथा ज्वर में लंघन (उपवास) करना चाहिए। लेकिन फिर भी अपने बुरे खानपान और रहन सहन के कारण अगर हम कैसे बीमार हो जाए तो हम कैसे इन दोषों के आधार पर हम खुद को स्वस्थ कर सकते हैं आइये जानते हैं 

वात दोष 

पंच तत्वों में जब हमारे शरीर में वायु और आकाश की मात्रा अधिक हो जाती है तो शरीर में वात दोष पाया जाता है।  वात दोष को बेहद प्रभावशाली माना गया है क्यूंकि हमारे आंतरिक शरीर में रिक्त स्थानों पर वायु ही रहती है। वात शरीर में रक्त संचार (blood flow) सुचारु करने में काम आता है। वात कि अधिकता के कारण पुराने रोग और विकार और बढ़ जाते है। आयुर्वेद के मुताबिक अकेले वात दोष के कारण शरीर को 80 से अधिक रोग हो सकते है।  

वात दोष 

वात दोष का मुख्य केंद्र पेट और कोलन (colon) होता है इसके साथ पेट के निचले भाग, दोनों छोटी-बड़ी आतों, कमर, टांग इत्यादि वात के मुख्य स्थान है। वात युक्त शरीर सामान्यतः दुबला-पतला, मेटबॉलिज़म अच्छा, आवाज़ भारी, नब्ज़ तेज़, और नींद में कमी होती हैं। ऐसे लोग जिनमे वात दोष की अधिकता होती हैं 

खानपान/डाइट

उनको फल, सब्जियों का रस, दुग्ध उत्पाद, फलियां (beans), काजू-बादाम खाने की सलाह दी जाती हैं।

व्यायाम

Lunges, Squats , Low-intesity exercise, और yoga वात पित्त में लाभकारी होता हैं। 

पित्त दोष

आयुर्वेद के अनुसार पित्तदोष शरीर में अग्नि की प्रधानता होती हैं। यह हमारे शरीर के हार्मोन्स और एंजाइम से सम्बन्धित होता है।  शरीर  में पित्त दोष का मुख्य लक्षण हैं पाचन में गड़बड़ी। ऐसे लोगो को acidity, constipation जैसी समस्याएं होती हैं। गर्मी की प्रधानता के कारण पित्त प्रवति के लोगो को गर्मी अधिक लगती हैं, इनका शरीर माध्यम कद-काठी का होता हैं इनमे नींद, भूख और कामेच्छा अधिक होती हैं। जीवन के मध्यकाल में याने युवावस्था और प्रौढ़अवस्था के समय पित्त दोष अधिक होता है। 

पित्त दोष

खान-पान/डाइट

पित्त दोष में मौसमी फल, आम, खीरा, तरबूज, हरी सब्जियां खाने के साथ जला-भुना, नमकीन -मसालेदार फ्राई खाने से परहेज की सलाह दी जाती हैं जिससे शरीर में पित्त दोष अधिक न हो।

व्यायाम

Yin yoga, Pilates, Swimming, Walking ,और  jogging  के साथ  मध्यम गति और मध्यम इंटेसिटी वाले एक्सरसाइज करने से पित्त की अधिकता नियंत्रण में रहती हैं। 

कफ दोष

आयुर्वेद के अनुसार कफ दोष वाले शरीर में पंच तत्वों के जल और पृथ्वी की अधिकता होती हैं। रोगप्रतिरोधक क्षमता और ऊतकीय- कोशिकीय प्रक्रियाओं को स्वस्थ रखना संतुलित कफ का काम हैं। कफ का मुख्य केंद्र छाती- पेट और आसपास होता हैं। कफ दोष के स्वामियों का शरीर मजबूत किन्तु आलसी होता हैं। किशोरावस्था में यह दोष बाकी जीवन काल की अपेक्षा अधिक प्रबल होता हैं। 

कफ दोष

खानपान/डाइट

पौष्टिक भोजन, फल का सेवन करना कफ युक्त शरीर के लिए फायदेमंद होता हैं जबकि कफ दोष की प्रधानता वाले शरीर को ऑयली और हैवी खाने से परहेज करना चाहिए।

व्यायाम

Tabata, HIIT, Plyometrics,Dance , Zumba और cardio एक्सरसाइज कफ दोष के लिए बेहतर होती हैं. 

आयुर्वेद में इन्ही दोषों के basis पर रोगों का इलाज किया जाता हैं जहाँ दवाइयों के साथ रोगी को खानपान, रहन-सहन, नियमित व्यायाम करने का परामर्श दिया जाता हैं। 

अपने अवचेतन मन को कैसे प्रोग्राम करें 

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क्या आप जानते हैं कि हम अपने brain का 10वें हिस्से से भी कम इस्तेमाल करते हैं. और इससे भी ज्यादा मजे की बात कि हम अपने अधिकतर काम अवचेतन mind से करते हैं. यानी कि अधिकतर काम हमारी awareness के बिना खुद ही हो जाते हैं. Subconscious mind (अवचेतन माइंड ) conscious mind (चेतन mind) के नीचे काम करता है और हमारे ऐसे विचारो और बेसिक क्रियाओं को कण्ट्रोल करता है.

subconscious mind myth or truth?

Subconscious mind अपने अन्दर इनफार्मेशन जो की deeply rooted होती है, उसके बेसिस पर analysis करके decision लेता है और हमारी awareness के बिना ही ये काम होता रहता है. 

तो क्या हम ये मान सकते हैं कि इतना सारा ऑटोमेटेड बिहेवियर सिर्फ इसी इनफार्मेशन पर हो रहा है जो हमारे Subconscious mind में पहले से ही प्रोग्राम है?

क्या हम इसे बदल सकते हैं? क्या हम इसे रीप्रोग्राम कर सकते हैं? और अगर कर सकते हैं तो क्या हमारे subconscious mind से होने वाले काम improve हो सकते हैं? आइये जानने की कोशिश करते हैं इस आर्टिकल में. 

आखिर है क्या ये subconscious mind?

आजकल मशीन लर्निंग और आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस की हर तरफ चर्चा है. मशीन लर्निंग में कंप्यूटर को काफी मॉडल्स के तहत लर्निंग करायी जाती है और उसके बाद इन मॉडल्स के बेस पर कंप्यूटर खुद ब खुद यानी कि आर्टिफीसियल तरीके से decision लेता है. इसी तरह हमारा subconscious mind हमारी नॉलेज, हमारे एक्सपीरियंस के हिसाब से लर्न करता रहता है और ऑटोमेटेड decision लेता रहता है. मिसाल के तौर पर अगर आपका हाथ किसी गर्म सरफेस पर पड़ जाता है तो आप यह नहीं सोचते कि हाँ इस सतह का तापमान मेरे हाथ के तापमान से ज्यादा है और अब मुझे अपना हाथ हटा लेना चाहिए. क्यूंकि इस सब में समय लगेगा और तब तक आपका हाथ जल चुका होगा. इस सिचुएशन में आपका subconscious mind एक्शन में आता है और आप के सोचे बिना ही एक्शन हो जाता है. 

subconscious mind kya hai?

इस तरह subconscious mind हम लोगो को safe रखने में और रोजमर्रा के कामो में हमे हेल्प करने में मदद करता है. इसका काम करने का तरीका हमारे तजुर्बे, हमारे विश्वास और हमारी नॉलेज पर depend करता है. 

जैसे कि अगर आप बचपन में फ़ुटबाल खेलते थे और आप ऑफिस जाते हुए बच्चो को फुटबाल खेलते हुए देखते हैं तो आपका भी मन करेगा कि मेरे को भी फ़ुटबाल खेलनी चाहिए.

क्या subconscious mind को प्रोग्राम किया जा सकता है?

अगर one word आंसर चाहिए तो हाँ, किया जा सकता है. जैसा कि subconscious mind हैबिट्स, लीर्निंग्स पर depend करता है और उन्ही मॉडल्स को subconscious mind decision लेने के लिए इस्तेमाल करता है तो लाजिमी है कि subconscious mind को रीप्रोग्राम किया जा सकता है. 

कैसे हम subconscious mind को प्रोग्राम कर सकते हैं?

प्रोग्राम करना थोडा सा टेढ़ा काम है पर नामुमकिन नहीं. निरंतर प्रयास करने से इसे प्रोग्राम किया जा सकता है.

1. ये जानना कि आपको क्या रोकता है? 

आप अपने बारे में सबसे ज्यादा जानते हैं. कई बार कुछ specific काम के लिए हमे हमेशा लगता है कि ये काम शायद मेरे से नहीं हो पायेगा. और जब उस काम को करने का सोचते हैं तो आपको चिंता या भय सताने लगता है. ये इनफार्मेशन subconscious mind को धीरे धीरे प्रोग्राम करती रहती है. आपको जानने का प्रयास करना है कि वो कौन सी बाते और विश्वास हैं जो आपको ऐसा करने से रोक रहा है. एक बार ये पता करने से हम इस पॉइंट पर काम कर सकते हैं कि इसे कैसे टैकल कर सकते हैं. 

आपको क्या रोकता है? 

२. अपने अन्दर विश्वास जगाना 

डर और चिंता काम करने की ability को कम करने के साथ साथ उस पर डिस्कशन करने की हिम्मत को कम करती है. एक बार चिंता, भय का कारण पता चल जाए तो हमे अपने विश्वास को दृढ करना है कि हम इस काम को कर सकते हैं. और मन ही मन में इस बात और ख्याल को रिपीट करना है. उसी बात को आप एक मिरर के सामने अपने आप से कहिये और अपने आप को इस बात का विश्वास दिलाइये कि हाँ, मै ये कर सकता हूँ. सतत प्रयास से आप पाएंगे कि धीरे धीरे आपका subconscious mind इस बात के लिए प्रोग्राम हो रहा है और लॉन्ग रन में improved decision के लिए तैयार हो रहा है. 

३. मैडिटेशन

हमारा दिमाग एक कंप्यूटर की तरह है और  इसकी प्रोसेसिंग भी काफी हद तक एक कंप्यूटर की तरह ही होती है. किसी चीज को प्रोसेस करने के लिए प्रोसेसर फ्री रहना आवश्यक है अगर आपके कंप्यूटर में आपके टास्क मैनेजर ने बहुत सारे टास्क चल रहे होंगे तो आपका कंप्यूटर का प्रोसेसर फ्री नहीं रह पाएगा और आप कोई भी नया टास्क  एफिशिएंटली नहीं कर पाएंगे. यही बात हमारे दिमाग पर भी लागू होती है. अगर हमारे दिमाग में बहुत सारे टास्क, एक्टिविटी या विचार एक साथ चल रहे होंगे तो हमारी अवेयरनेस कम रहेगी यानी कि अपनी अवेयरनेस बढ़ाने के लिए हमें अपने दिमाग के टास्क कम करने कम करने होंगे.  

Rewiring your subconscious mind with meditation

इसका सबसे अच्छा सलूशन है मेडिटेशन. जब हम मेडिटेशन में बैठते हैं तो आपकी आंखें बंद रहती हैं जिससे कि आपका देखने का प्रोसेस बंद हो जाता है. उसी तरह जब आप मैडिटेशन में फोकस करते हैं तो आप आसपास के साउंड से विचलित नहीं होते. इस तरह आपके सुनने का प्रोसेस काफी हद तक कम हो जाता है. आपकी फिजिकल एक्टिविटी कम हो जाती है और आपके दिमाग में चल रहे विचार शांत हो जाते है. इस तरह आपके दिमाग का प्रोसेसर फ्री हो जाता है और वह किसी भी तरह की अवेयरनेस के आपका दिमागी रिसोर्स अवेलेबल हो जाता है. तब आप अपने subconscious mind को फोकस करने के लिए, पॉजिटिव थिंकिंग के लिए rewire कर सकते हैं. 

In shorts, मैडिटेशन की सहायता से आप अपने विचारो को और एक्टिविटीज को efficiently कर पाने के लिए धीरे धीरे प्रोग्राम कर रहे होते हैं. 

इन तरीकों से निरंतर प्रयास से आप धीरे-धीरे पाएंगे की आपके सबकॉन्शियस माइंड की डिसीजन लेने की कृति कैपेबिलिटी पहले से बेहतर हो रही है और अपने सबकॉन्शियस माइंड को पॉजिटिवली प्रोग्राम कर पा रहे हैं. 

क्या है हठ योग

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नियमित योग के अभ्यास से मिलने वाले अनेकों लाभों के कारण योग विद्या आज समूचे संसार में अपनायी जा रही है. प्रारम्भ से ही योग विद्या एक बृहद विषय रहा है जहाँ ऋषियों-योगिओं ने योग की कई अर्थ और परिभाषाएं दीं. प्राचीनकाल में योग विद्या के अनेक भेद बतलाये गए हैं जैसे – ज्ञान योग, कर्म योग, भक्ति योग, राज योग, मन्त्र योग, लय योग, हठ योग. 

हठयोग विश्व की प्राचीनतम प्रणालियों में से एक है. योग विद्या की विभिन्न परम्पराओं में हठयोग का महत्वपूर्ण स्थान है, इसका अभ्यास योगियों द्वारा शारीरिक और मानसिक विकास को बेहतर बनाने के लिए किया जाता था जोकि समय के साथ आम जन मानस में भी लोकप्रिय हो गया. आज हम हठ योग के बारें में ही विस्तार से जानेंगे.

हठयोग की उत्पत्ति (Origin of hatha yoga)

“श्री आदिनाथाय नमोऽस्तु तस्मै येनोपदिष्टा हठयोगविद्या। विभ्राजते प्रोन्नतराजयोगमारोदमिच्छोरधिरोहिणीव॥”

अर्थ – उन सर्वशक्तिमान आदिनाथ को नमन है जिन्होंने इस संसार को हठयोग की विद्या दी. जो राजयोग के उच्चतम शिखर पर पहुँचने के लिए सेतु के सामान है. इस मंत्र सूत्र में सर्वशक्ति आदिनाथ भगवान् शिव को कहा गया है. ऐसी मान्यता है की हठयोग की उत्पत्ति तंत्र विद्या से हुयी है और भगवन आदिनाथ शिव ही इन विद्याओं (तंत्र और हठयोग) के प्रणेता थे. हठयोग के बारें में भगवान शिव ने माता पार्वती को सर्वप्रथम बतलाया था जो तंत्र ग्रंथों में शिव-पार्वती संवाद के रूप में मिलता है. 

   एक मान्यता के अनुसार १४वी और १५वी सदी में तंत्र विद्या अपने चरम पर थी और इसके साथ ही लोग इस विद्या का उपयोग गलत कामों को करने के लिए करने लगे. जिसमे परिणाम स्वरुप जब समाज में अपराध बढ़ने लगा और शांति भांग होने लगी तब तत्कालीन नाथ सम्प्रदाय के आचार्य मतस्येंद्र नाथ और गौरक्षनाथ ने इस विद्या के विकृत स्वरुप को बदलकर हठयोग विद्या को जनसामान्य तब पहुंचाया जिसे राजयोग के एक अंग के रूप में स्वीकार किया गया. 

हठयोग का परिचय (introduction to hatha yoga) –

अलग अलग विद्वानों ने हठयोग को भिन्न -भिन्न परिभाषाओं के जरिये समझाया है. एक परिभाषा के अनुसार ‘हकार’ का अर्थ  प्राणवायु और ‘ठकार’ का अर्थ अपान वायु है. हठयोग के अंतर्गत हठ शब्द में ‘ह’ का अभिप्राय सूर्य से और ‘ठ’ का अभिप्राय चन्द्रमा से है. यह हमारे मानव शरीर के अन्दर विधमान नाड़ियों का प्रतीकात्मक रूप माना जाता है. सूर्य और चंद्रमा के अलावा हठयोग में ‘ह’ और ‘ठ’ को अन्य प्रतीकों के रूप में भी प्रयोग किया जाता है.

 ह                                                  ठ  
     शिव                                                  शक्ति 
    पिंगला नाड़ी                                        इड़ा नाड़ी 
    ग्रीष्म                                                  शीत
    पुरुष                                                  स्त्री 
    दिन                                                   रात 
    तमस                                                  रजस
    पित्त                                                    कफ 

हठयोग के उद्देश्य और लाभ (benefits of hatha yoga)

शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक विकारों को दूर करने के लिए योग की अनेकों तकनीकों का प्रयोग किया जाता है इसी तरह हठयोग से भी साधक को ढेर सारे लाभ प्राप्त होते हैं..

१. राजयोग को सफलतापूर्वक प्राप्त करने के लिए हठयोग का अभ्यास किया जाता है.

२.नियमित रूप से हठयोग का अभ्यास करने से शरीर सुचारु रूप से कार्य करता है, शरीर में तंदरुस्ती का संचार होता है.

३. शरीर को स्वस्थ रखने और रोगो से दूर रखने में हाथयोग बेहद प्रभावकारी सिद्ध होता है.

४. हठयोग का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य साधक के शरीर के साथ चित्त को भी निर्मल करते हुए व्यवहार को परिश्रित बनाना होता है.

५. हठयोग के अभ्यास से साधक का सर्वांगीण विकास संभव हो पाता है.

६. यह पंच क्लेशों यथा – अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष, अभिनिवेश को दूर करता है.

७. हठयोग के नियमित अभ्यास से कुंडलिनी जागरण के माध्यम से साधक को योग के चार्म लक्ष्यों की प्राप्ति होती है.

८. हठयोग की साधना से साधक को शक्ति, साहस, शांति, निर्मलता और पूर्णता की प्राप्ति होती है.

हठयोग के अंग- (Practice of Hatha Yoga)

हठयोग के ग्रन्थ घेरड़ संहिता में हठयोग की साधना के लिए सात अभ्यास बतलायें गए हैं इन अभ्यासों के साथ जब हठयोगी अंतिम चरण समाधी तक पहुंच जाता है तब इसे हठयोग की साधना कहा जाता है.

१. षट्कर्म- हठयोग विद्या में षट्कर्म का आशय शाररें में छह शुद्धि की क्रिया से है. जो क्रमशः धौति, वस्ति, नेति, नैली, त्राटक और कपालभाति है . इन क्रियाओं से शरीर के पंच तव और तीनों दोष संतुलित रहते हैं.

२. आसान- शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विभिन्न प्रकार के असानो को नियमित किया जाता है. इससे शरीर रोगो से दूर, चुस्त एवं पुष्ट होता है.

३. मुद्रा – घेरड़ सहिंता में वर्णित है “मुद्रया स्थितः चैव” अर्थात मुद्रा से चित्त स्थिर हो जाता है और चंचलता दूर होती है.

४.प्रत्याहार – प्रत्याहार के अंतरगत साधक अपनी इन्द्रियों को साधने का प्रयास करते हुए उन्हें अंतर्मुखी बनाता है.

५. प्राणायाम – प्राणायाम का अर्थ होता है सांसों पर नियंत्रण रखते हुए अपने प्राणों में नियंत्रण रखना. इससे नाड़ियां शुद्ध होती है और उमंग-उत्साह का संचार होता है.

६. ध्यान- इस अभ्यास में ध्यान को साधा जाता है जिससे मानसिक शक्तियों का विकास होता है और एकाग्रता में वृद्धि होती है.

७. समाधी- हठयोग साधना का अंतिम चरण समाधी का होता है इस स्थिति में पहुंचने पर साधक को चिर आनंदस्वरूप की प्राप्ति हो जाती है. 

मुद्राये क्या है

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 मुद्राये yogic science का एक ऐसा part है जिसे कभी भी, कहीं भी शांति से बैठे हुए आप इन्हें परफॉर्म कर सकते हैं और अपनी बॉडी को हील करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. कहा जाता है इन मुद्राओं का सर्वाधिक फायदा लोटस पोजिशन यानी कि पद्मासन में होता है.

वैसे तो मुद्राएं शरीर की specific बीमारियां या शारीरिक समस्याओं को हल करने के लिए इस्तेमाल होती हैं,  परंतु इन मुद्राओं का रेगुलर तरीके से प्रैक्टिस किया जाए तो ये आपके शरीर पर overall  बहुत अच्छा प्रभाव डालती हैं और भविष्य में होने वाली पोटेंशियल बीमारियों से बचाती हैं.  

आपके हाथों में बॉडी के हर पार्ट के लिए पल्स सेंटर मौजूद होते हैं. इन्हें ट्रिगर करने से कुछ अलग तरह के हीलिंग प्रोसेस होते हैं जो कि आप की अलग अलग बॉडी पार्ट पर प्रभाव डालता है. हालांकि आप अपने हाथ के बारे में और उंगलियों के बारे में पहले से ही जानते हैं, पर आइए एक अनूठे तरीके से अपने हाथो को समझने का प्रयास करते हैं. 

मुद्राये क्या है ?

आप मानिए ना मानिए आपकी हेल्थ, आपके हाथों के हाथ में ही है. हमारे हाथ हमारे शरीर की वैलनेस के लिए designed है. हमारी चारों उंगलियां और एक अंगूठा मिलकर ऐसा बिल्डिंग ब्लॉक बनाते हैं जिसे हम हिंदी में पंचमहाभूत तत्व कहते हैं जिससे कि सारा यूनिवर्स यानी कि ब्रहमाण्ड बना हुआ है. पंचमहाभूत का मतलब है गगन (sky) वायु (air) आकाश (ether) पृथ्वी(earth) और जल (water).

रामचरित मानस  में भी एक दोहा है कि छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा। जिसका मतलब है की शरीर का निर्माण इन्ही पञ्च तत्वों से होकर बना है. 

नेचुरल साइंस की अगर बात माने तो डिजीज या बीमारियों कुछ भी नहीं है वह इन्हीं पंचमहाभूत तत्वों  का imbalance है अगर यह 5 महाभूत तत्व आपके शरीर में balanced होंगे, तो आप को normally कोई बीमारी नहीं होनी चाहिए.आइए देखते हैं कैसे हम अपनी फिंगर यानी की उंगलियां और अंगूठे की हेल्प से अपने इन पंच महाभूत तत्व को बैलेंस कर सकते हैं.

Thumb – The fire (Agni) अन्गुष्ठ या अंगूठा 

Index finger – The air (Vayu)  तर्जनी 

Middle finger – The ether (Aakasha) मध्यमा   

Ring finger – The earth (Prithvi)  अनामिका 

Small finger – The water (Jala) कनिष्ठा  

hindi finger names

आप का अंगूठा, फायर यानी की अग्नि को रिप्रेजेंट करता है, आपकी इंडेक्स नंबर यानी तर्जनी वायु का प्रतिनिधित्व करती है. मिडल फिंगर, मध्यमा, आकाश को रिप्रेजेंट करता है. रिंग फिंगर यानी कि अनामिका earth को,  और कनिष्ठ यानी कि small फिंगर को दर्शाती है. 

आप कुछ specific तरीकों से अपनी फिंगर्स को align करके या टच करके अपने पंचतत्वो को बैलेंस कर सकते हैं. इन्हीं arrangements को हस्त मुद्रा कहा जाता है और यह बहुत ही आसान है. आप इसे किसी भी समय कर सकते हैं. आइए देखते हैं ऐसी कौन सी 10 इंपॉर्टेंट मुद्राएं हैं जिन्हें करके आप अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त कर सकते हैं.

ज्ञान मुद्रा

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह मुद्रा ज्ञान की प्राप्ति के लिए की जाती है. इस मुद्रा को करने के लिए आपको अपने thumb की टिप और इंडेक्स फिंगर की टिप यानी कि अंगूठे की टिप और तर्जनी के टिप को आपस में टच करना है बाकी 3 फिंगर सीधी रहेंगे.

Gyaan Mudra

यह मुद्रा आपको मेडिटेशन में बहुत फायदा करती है और कंसंट्रेशन बढ़ाने में फायदा करती है और आपके मस्तिष्क में अगर नेगेटिविटी है उसे कम करने में फायदा करती है.

स्टूडेंट के लिए यह काफी लाभदायक है. ऐसा बोला जाता है कि स्टूडेंट रेगुलर प्रैक्टिस से अपनी मेमोरी को इंप्रूव कर सकते हैं.

इस मुद्रा से आप पुराने सर दर्द, इनसोम्निया, हाइपरटेंशन और गुस्से को कम कर सकते हैं.

वायु मुद्रा

इस मुद्रा में आप अपने  इंडेक्स यानी तर्जनी फिंगर को इस तरह मोड़ना है कि वह thumb के बेस पर टच होने लगे और बाद में अपने अंगूठे यानी thumb को फर्स्ट सिंगर के ऊपर ले आना है और हल्का सा प्रेशर डालना है बाकी तीन फिंगर आपकी सीधी रहेंगे यह है आपकी वायु मुद्रा.

इस मुद्रा के प्रैक्टिस करने से आपके शरीर में वायु से रिलेटेड जो भी विकार हैं उनसे आप को निजात मिलेगी. जैसे कि अर्थराइटिस गॉड साइटिका घुटनों के दर्द और पेट की गैस, इन सब में आपको फायदा होता है.

स्पाइनल पेन के लिए यह मुद्रा विशेष रूप से लाभकारी है

शून्य मुद्रा

 इस मुद्रा में आपको अपनी मिडल फिंगर यानी कि मध्यमा को अपने thumb के बेस पर टच करना होता है आपका अंगूठा इसके ऊपर हलके से प्रेशर के साथ रखा जाता है. बाकी 3 fingers स्ट्रैट यानी कि सीधी रहती हैं. यह है आपकी शून्य मुद्रा. 

 इसकी रेगुलर प्रैक्टिस से आपको आपके कान के दर्द और कानों के बहने जैसी समस्या से निजात मिलता है. अगर एक घंटा तक रोज किया जाता है तो बहरेपन में भी कम सुनाई देता है उसके लिए भी फायदा होता है. इस मुद्रा से आप की हड्डियां यानी कि bones स्ट्रांग होती है. 

आप के मसूड़े काफी मजबूत होते हैं. Throat यानी कि गले की प्रॉब्लम और थायराइड में भी यह फायदेमंद है

पृथ्वी मुद्रा 

 इस मुद्रा में आपको अपने अंगूठे के टिप को और रिंग फिंगर यानी कि अनामिका की टिप को आपस में टच करना है बाकी तीनों फिंगर स्टेट रहेंगे.

 यह मुद्रा करने से आपकी बॉडी में वीकनेस, शरीर का पतलापन या मोटापा दोनों में फायदा होता है और आपको आपकी बॉडी का सही वेट रेगुलेट करने में सहायता होती है.

 इससे आपका डाइजेस्टिव सिस्टम भी improve होता है और शरीर में विटामिन की कमी भी दूर होती है. इससे शरीर का आलस्य कम होता है और भरपूर एनर्जी रहती है.

प्राण मुद्रा

प्राण मुद्रा करने के लिए आपको अपने अंगूठे, अनामिका और कनिष्ठा तीनों की टिप को आपस में टच करना होता है यानी कि tip of the thumb, ring finger and little finger तीनों को टच करना होता है. 

इस मुद्रा को करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह आपके प्राण की पावर यानी कि  प्राणशक्ति को जाग्रत करता है जिससे आपकी हेल्थ और एनर्जी दोनों align हो जाते हैं. 

इससे आंखों की बीमारियां और शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है. बॉडी में विटामिंस की डेफिशियेंसी और थकावट कम होती है.

प्राण मुद्रा को करने से आपकी भूख और प्यास भी कम होती है और कम खाने से भी शरीर में उर्जा का संचार रहता है. 

अगर आपका इनसोम्निया की बीमारी है तो प्राण मुद्रा को ज्ञान मुद्रा के साथ करने पर आपको नींद में भी हेल्प मिलते हैं.

अपान मुद्रा 

इस मुद्रा के लिए आपको अपने thumb, मिडिल फिंगर और रिंग फिंगर की टिप्स  को साथ जोड़ना होता है. यानी कि आपको अपने अंगूठे की टिप, मध्यमा और अनामिका की टिप से जोड़ने पर या मुद्रा बनती है. बाकी दोनों उंगलियों को स्ट्रेट रखना होता है. 

अपान मुद्रा के फायदे हैं कि यह बात शरीर से अशुध्त्ता यानि कि toxic elements कम करती है और आपके शरीर को प्योर बनाती है. अगर आपको कॉन्स्टिपेशन, piles या फिर वायु से होने वाले रोग है तो यह उन्हें कम करती है. अगर आपको डायबिटीज, यूरिन का रुकना, किडनी का कोई भी डिफेक्ट या दांतो की कोई भी समस्या है तो  उससे भी लड़ने में सहायक है. Stomach से और हार्ट की बीमारी के लिए भी यह मुद्रा बहुत अच्छी मानी जाती है

अपान वायु मुद्रा

यह मुद्रा वायु मुद्रा और अपान मुद्रा का कॉन्बिनेशन है. इसके लिए आपको अपने अंगूठे की टिप को मध्यमा और अनामिका की टिप से टच करना है और साथ ही में इंडेक्स फिंगर यानी की तर्जनी को मोड कर अपने अंगूठे के नीचे रखकर हल्का सा प्रेशर डालना है. सबसे छोटी यानी कि कनिष्ठा सीधी रहेगी.

 इस मुद्रा से अपान और वायु मुद्रा के लाभ दोनों एक साथ मिलते हैं. जिन लोगों का हृदय कमजोर होता है वे लोग इस मुद्रा को रोज कर सकते हैं या जिन व्यक्तियों को हाल ही में हर्ट अटैक हुआ है उन लोगों के लिए भी यह मुद्रा काफी फायदेमंद है. यह मुद्रा पेट से गैस को कम करती है. अस्थमा और हाई ब्लड प्रेशर में फायदेमंद है.  अगर इस मुद्रा को सीढिय चढ़ने के 5-7 मिनट पहले किया जाए तो सीढ़ियां चढ़ने में आसानी होती है.

सूर्य मुद्रा 

इस मुद्रा को करने के लिए आपको अनामिका यानी कि रिंग फिंगर को अंगूठे के base पर लगाया जाता है और अंगूठे से हल्का सा प्रेशर डाला जाता है.

इस मुद्रा को करने से  आपकी बॉडी में बैलेंस बनता है और आपकी बॉडी का वेट स्थिर रहता है. इस मुद्रा से हाइपरटेंशन और कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों को हैंडल करने में मदद मिलती है.

इस मुद्रा से लिवर और डायबिटीज के डिफेक्ट्स भी दूर हो जाते है.

जो व्यक्ति शारीरिक रूप से कमजोर हो वह इस मुद्रा को ना करें और साथ ही इस मुद्रा को गर्म मौसम में काफी ज्यादा समय के लिए नहीं किया जाना चाहिए.

वरुण मुद्रा 

कनिष्ठा यानी कि लिटिल फिंगर को thumb की टिप से टच करने पर वरुण मुद्रा का निर्माण होता है.

इस मुद्रा से आपकी स्किन की dryness कम होती है और त्वचा चमकदार होती है,  मुंहासे दूर होते हैं और आपका चेहरा चमकदार होता है.

इस मुद्रा को अस्थमा और सांस की बीमारी वाले व्यक्तियों को कम ही देर के लिए करना चाहिए.

लिंग मुद्रा

सबसे अंत में आती है लिंग मुद्रा

अपनी उंगलियों को आपस में फंसाकर जैसा की फोटो में दिखाया गया है वैसे किया जाता है और सीधे हाथ के अंगूठे को हल्का सा प्रेशर डाल कर सीधा रखा जाता है और रिलैक्स होकर इस मुद्रा में बैठना होता है.

इस मुद्रा को करने से आपकी बॉडी में हीट जनरेट होती है और अगर ज्यादा देर तक किया जाए तो ठंडी में भी आपको sweating हो सकती है. अगर आपको कोल्ड, अस्थमा, कफ या साइनस की समस्या है, तो यह मुद्रा काफी लाभदायक है. अगर आप आपके गले में कफ की शिकायत है तो यह उसे भी ड्राई करता हैं.

परंतु इस मुद्रा को अगर किया जाए तो शरीर में पानी, फल, घी और दूध का सेवन थोड़ा बढ़ा दिया जाना चाहिए.

तो यह थी 10 सबसे इंपोर्टेंट मुद्राएं इसके अलावा भी कई इंपॉर्टेंट मुद्राएं हैं परंतु यह 10 बेसिक और सबसे महत्वपूर्ण मुद्राएं हैं. अपने रोग, ऋतू और आवश्यकता  के अनुसार इन मुद्राओं का कभी भी जब आप फ्री हो इस्तेमाल कर सकते हैं. हालांकि कि जैसा कि हमने बताया कि पद्मासन में बैठकर मुद्रा को करने से विशेष लाभ होता है. इस तरह की बातें और हम आपको बताते रहेंगे मिलेंगे आपसे आर्टिकल में तब तक के लिए धन्यवाद. 

अष्टांग योग का परिचय ( Introduction of Asthnag yoga )

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 विद्या के जनक और पितामह कहे जाने वाले आचार्य महर्षि पतंजलि ने योग को सबसे व्यावहारिक रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने मन की चंचलता को स्थिर करने की तकनीक के रूप में योग की संज्ञा दी है। पतंजल‍ि ने योग की समस्त विद्याओं को आठ अंगों में श्रेणीबद्ध कर दिया है। इसे ही अष्टांग योग अथवा राजयोग के नाम से जाना जाता है। संस्कृत में “अष्ट + अंग” अष्टांग है। “अष्ट” का अर्थ है आठ और “अंग” अंग है। इनमे आसन, प्राणायाम, धारणा, ध्यान और समाधि या यम और नियम का वर्णन पतंजलि ने अपने संस्कृत सूत्रों (छंदों) में व्यवस्थित रूप से किया है। 

अष्टांग योग का परिचय

आष्टांग योग का इतिहास (History of Ashtang yoga) 

पूर्व वैदिक दर्शन में वर्णित योग की जड़ें लगभग 5000 वर्ष ईसा पूर्व मानी जाती हैं। पतंजलि ऋषि ने अपनी पुस्तक पतंजल योग सूत्र में अष्टांग योग मार्ग की रचना करते हुए योग को व्यावहारिक जीवन से जोड़ा। जिसमें उन्होंने योग को अष्टांग या अष्टांग मार्ग के रूप में सूत्रबद्ध किया है। गौतम बुध्द ने भी मोक्ष का जो आष्टांगिक मार्ग बताया हैं जिनमें योगसूत्र के ही आठ अंगों का वर्णन है। 

अष्टांग योग के आठ अंग (Eight limbs  of Ashtang yoga)

अष्टांग योग के आठ अंग

(1) यम (संयम/सिद्धांत)

यह अष्टांग योग का पहला चरण है।  इसके अंतर्गत पांच सिद्धांतों का अनुशरण करना होता है-

  • अहिंसा – अपने कार्यों और विचारों से किसी की भी हानि नहीं करने का भाव रखना। 
  • सत्य – जनमानस के कल्याण की भावना के साथ जो जैसा सुना अथवा देखा गया है कहना ही सत्य है। 
  • अस्तेय – पराई चीज़ों को उनके मालिक की आज्ञा के बिना न लेना अथवा चोरी न करना। 
  • ब्रह्मचर्य – अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना और उन पर निरंतरता बनाये रखना। 
  • अपरिगाह – वस्तु का आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना साथ ही दूसरों की वस्तुओं की इच्छा न करना। 

 (2)नियम

आत्म अनुशासन से सम्बन्धित इस चरण में भी पाँच सिद्धांतों को अपनाना होता है-

  • शौच – साधक को अपना शरीर और मन को शुध्द करना।
  • संतोष – किसी भी चीज़ की इच्छा की अनुभूति न रखके संतुष्ट और प्रसन्नता का भाव रखना। 
  • तप – सुख-दुःख किसी भी परिस्थिति में समभाव रखते हुए मन और शरीर को तापना। 
  • स्वाध्याय – खुद को पहचानने, मन में झाँकने ले लिए आत्मचिंतन करना और अपनी कमियों को स्वयं ही दूर करना। अपने विचारों को शुद्ध करने के साथ ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रयास करना। 
  • ईश्वर – पूर्ण समर्पण और श्रद्धा के साथ स्व को ईश्वर को सौंप देना। 

(3)आसन (योग मुद्राये)

तीसरा अंग में साधक अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विभिन्न आसन करता है इसके लिए साधक सुखासन, पद्मासन, या ज्ञान मुद्रा में बैठ सकता है। मह्रिषि पतंजलि ने आसन को स्थिर और सुखपूर्वक बैठने की क्रिया कहा है। लेकिन इसे करने के लिए साधक को यम और नियम के सिद्धांतों का अनिवार्य रूप से पालन लिया जाना आवश्यक होता है। 

(4) प्राणायाम 

श्वासों पर नियमन, नियंत्रण करते हुए सम्यक भाव से साँस लेने और छोड़ने पर ध्यान केंद्रित करना। यह साधक के मन की चंचलता को स्थिर करने और एकाग्र करने में सहायक होता है। इसके अंतरगत कपालभाति, अनुलोम -विलोम अथवा आनापान के माध्यम में साधक ध्यान केंद्रित करते हैं।

(5)प्रत्याहार

इन्द्रियों को अंतरमुखी करके उन पर नियंत्रण कर लेना ही प्रत्याहार कहलाता है। प्रत्याहार के अंतरगत बाहरी विषयों, भोग विलासों से अपने मन को हटा कर एकाग्र करके अपनी इन्द्रियों को अंतरात्मा की और बिमुख करके साधक अपने मन और शरीर पर विजय प्राप्त कर लेता है।  

(6)धारणा (एकग्रता)

अष्टांग योग के पूर्व अंगों के सिद्धांतों का अनुशरण करके साधक का शरीर शुद्ध और स्वश्थ हो जाता है मन और इन्द्रियाँ सम्यक अवस्था में आ जाती है। धारणा के तहत चित्त को ध्यैय में लगाने के लिए साधक परमात्मा के सगुण अथवा निर्गुण रूप की प्राप्ति के लिए नित नियमित आहार-विहार के साथ श्रद्धा पूर्वक अभ्यास करता है। 

(7) ध्यान (साधना)

भूत-भविष्य से परे वर्तमान में जीना ही ध्यान की अवस्था कहा जाता है। इसके हेतु साधक मन को स्थिर करके, किसी चीज़ को स्मरित करके, अपने मन को उसी दिशा में एकाग्र करता है जब साधक पूर्ण ध्यान की अवस्था में पहुंच जाता है तब उसे किसी भी भाव, वस्तु, विचार आदि का ज्ञान नहीं होता है। 

(8)समाधि (मोक्ष)

समाधी मोक्ष की अवस्था को कहते है। पूर्ण ब्रम्ह को प्राप्त कर लेना ही इस चरण का धोतक होता है। इस चरण में साधक को पूर्ण परमानन्द की अनुभूति होती है. साधक निरंतर घ्यान से मन और आत्मा में ध्यान लगा अपने शरीर में जड़त्व को छोड़ शून्यता को प्राप्त कर लेता है. इस अवस्था से साधक सुख-दुःख, राग-द्वेष से परे विपश्यना को प्राप्त कर लेता है.

अष्टांग योग के फायदे (benefits of ashtanga yoga)

अष्टांग योग के फायदे

१. अष्टांग योग पुरे शरीर को स्वस्थ बनाता है यह साधक को कई बिमारियों से बचाता है. 

२. मानसिक स्वास्थ के लिए अष्टांग योग बेहद प्रभावकारी है यह एंग्जायटी, डिप्रेशन जैसे विकारों से निजाद दिलाता है. 

३. योग के द्वारा रक्त प्रवाह पुरे शरीर में निरंतर बना रहता है. जिससे शरीर में चुस्ती और स्फूर्ति बनी रहती है. 

४. प्राणायाम करने से तंत्रिका तंत्र की क्रिया बेहतर होती है जिसे अस्थमा, दमा जैसे रोगों से छुटकारा मिलता है.

५. आष्टांग योग से साधक को जीवन में तनाव से मुक्ति मिलती है एवं जीवन में सकारात्मकता रहती है.

६. चेहरे पर कांतिमय सौंदर्य प्राप्त होता है.

७. दैनिक व्यव्हार के कार्यों में एकाग्रता रहने से उत्पादक क्षमता बेहतर होती है एवं सामाजिक जीवन बेहतर होता है.

८. नियमित रूप से योग करने से वृद्धावस्था में भी शारीरिक संतुलन बना रहता है.

९. अष्टांग योग से प्रतिरक्षा तंत्र की प्रणाली की कार्यक्षमता बढ़ जाती है, जिससे हमारा शरीर रोगों से बेहतर तरह से लड़ सकता है.

१०. आष्टांग योग नियमित करने से शरीर अधिक लचीला हो जाता है.

११. जीवन में उमंग बनी रहती है. एवं मनुष्यों में नैतिक मूल्यों का विकास होता है.

१२. यह मनुष्य को श्रेष्ट जीवन जीने की भावना देने के साथ परमात्मा से मिलन का मार्ग प्रशस्थ करता है.

कुंडलिनी क्या है? इसका अभ्यास कैसे करें?

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हमारी प्राण शक्ति के केंद्र कुंडलिनी को अंग्रेजी भाषा में ‘serpent power’ कहते हैं। विज्ञान अभी इसको नहीं मानता, इसी कारण कुंडलिनी साधना और इसके इफेक्टिवनेस को लेकर कई मिथ (myth) मौजूद हैं। लेकिन अब धीरे- धीरे विज्ञान जगत के अनुसंधानों (Research) ने भी ये सिद्ध किया है कि हमारे शरीर में ऐसी कई शक्तियां मौजूद हैं जिनसे हम अभी तक अनजान हैं। और यह शक्तियां हमारी लाइफ को कई तरह से प्रभावित करती हैं। बस इन्हीं शक्तियों या यूँ कहें कि सिद्धियों पर आधारित विद्या ही कुंडलिनी है। 

कुंडलिनी क्या है?

आपको ये जान कर आश्चर्य होगा कि कुण्लिनी साधना का जिक्र न तो योग के जनक कहे जाने वाले महर्षि पतंजलि ने किया और न ही इसका वर्णन गीता में मिलता है। आमतौर पर कुंडलिनी के बारें में तंत्र शास्त्रों में लिखा गया है। इस विद्या को कुंडल के रूप में दिखाया गया है जिसके अनुसार एक सर्पनी अथवा नागकन्या कुण्डल बनाते हुए अपने ही मुँह में पूँछ को लेकर अज्ञात स्थान पर छुपी रहती है। इस प्रतीक का अर्थ वे सारी शक्तियों से है जो हमारे शरीर में तो समायी हुयी है लेकिन इनका बोध हमे नहीं है। कुंडल के रूप में प्रतीक होने के कारण ही इस विद्या को कुंडलिनी कहा गया। यह एक ऐसी विद्या है जो योग, तंत्र, आयुर्वेद और रसायन सभी को साथ लेकर चलती है। 

कुंडलिनी विद्या का उद्देश्य

कुंडलिनी विद्या का उद्देश्य हमारे मानव शरीर में छुपी सारी चमत्कारिक सिद्धियों को बाहर लेकर आना है। इस विद्या से शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक विकास संभव हो पाता है। जब कुंडलिनी शांत होती है तो हमें इसका कोई असर समझ नहीं आता लेकिन जब कुंडलिनी जाग्रत हो जाती है तो हमें इसके चमत्कारों की बारे में अनुभव होता चलता है। ऐसा माना जाता है की पूरी तरह से जाग्रत कुंडलिनी से पूर्ण जागरूकता के साथ परम आनंद और आध्यात्मिक मुक्ति की और ले जा सकती है। कुंडलिनी साधक की चेतना को दिव्य चेतना के साथ एकजुट करने में मदद करता है।

कुंडलिनी का आधुनिक रूप

कुंडलिनी योग की शैली सिख परंपरा के दिवंगत योगी भजन (1929 – 2004) द्वारा विकसित की गई थी। उन्होंने एक अभ्यास तैयार किया जिसमें आसन और सांस-कार्य के क्रम थे, जिसका उद्देश्य अभ्यासी की चेतना को ऊपर उठाना था ताकि यह दिव्य चेतना के साथ विलीन हो सके।

कुंडलिनी और नाड़ियाँ

योग कुण्डल्यूपनिषद में कुंडलिनी के बारे में ज़िक्र इस तरह से किया गया है “कुण्डले अस्या स्तः ईतिहः कुंडलिनी” अर्थात दो कुण्डल वाली होने के कारण पिण्डस्त उस शक्ति प्रवाह को कुण्डलिनी कहते है। इधर दो कुण्डल का अर्थ इड़ा और पिंगला से है। हमारी बॉडी में मुख्य रूप से तीन नाड़ियां होती हैं – १ इड़ा २ पिंगला ३ सुषुम्ना

कुंडलिनी और नाड़ियाँ

यह तीनों नाड़ी कुण्डलिनी योग की सबसे अहम् नाड़ियाँ हैं। इनके शुद्ध होने से हमारी बॉडी की अन्य 72 हजार नाड़ियाँ भी शुद्ध होने लगती हैं  जिनका शुद्ध होना कुंडलिनी के लिए अहम् है। सुषुम्ना नाड़ी मूलाधार चक्र से शुरू होकर हमारे सर के ऊपर स्थित सहस्त्रार चक्र तक जाती है। सभी चक्र सुषुम्ना में ही विद्यमान हैं। यह तीन नाड़ियाँ सबसे पहले मूलाधार मूलाधार केंद्र में ही मिलती हैं। इड़ा को गंगा, पिंगला को यमुना और सुषुम्ना को सरस्वती कहे जाने के कारण ही मूलाधार को मुक्तत्रिवेणी और आज्ञाचक्र को युक्त त्रिवेणीकहते हैं।

कुण्डलिनी साधना का अभ्यास

कुंडलिनी को जगाने के लिए अलग-अलग विधियाँ हैं – जैसे राज योग के अंतर्गत मन को एकाग्र करने और प्रशिक्षित करने से कुण्डलिनी जाग्रत होती है। जबकि हठ योग में आसन, प्राणायाम और मुद्रा का अभ्यास करने, भक्ति योग में स्वयं को पूर्ण आत्म को समर्पित करने, और कर्मयोग में मानवता की निःस्वार्थ सेवा से कुंडलिनी जागृत होती है। साधना चाहे कोई भी हो नियमित अभ्यास से साधक कुण्डलिनी के प्रभावों का आभास होता जाता है। 

कुंडलिनी का चक्रों को भेदन

 साधना में प्रगति के साध कुंडलिनी सुषम्ना नाड़ी में ऊपर की और चढ़ती है। कुंडलिनी का सुषुम्ना में ऊपर चढ़ने का अर्थ है चेतना में धाराप्रवाहिक विस्तार। कुंडलिनी के प्रत्येक केंद्र में अनेकों शक्तियों का निवास होता है। जब योगी मूलाधार चक्र का भेदन कर लेता है तो वह लालसा और वासना से विजय पा लेता है। 

कुंडलिनी का चक्रों को भेदन
  • मूलाधार चक्र का भेदन मानसिक रूप से स्टेबिलिटी, भावनात्मक और आध्यत्मिक रूप से सुरक्षा की भावना को नियंत्रित करता है।
  • स्वाधिष्ठान चक्र के नियंत्रण से प्रजनन, रचनात्मकता, ख़ुशी और उत्सुकता की प्राप्ति होती है।
  • मणिबंध चक्र द्वारा नियंत्रित होने वाले मुख्य विषयों में पाचन, मानसिक निजी बल की प्राप्ति के साथ भय, व्यग्रता, अंतर्मुखता जैसी जटिल भावना का परिवर्तन हैं।
  • अनाहत चक्र से जुड़े विषयों में जटिल भावनाये, संतुलन, करुणा, स्वयं व दूसरों के लिए प्रेम और कल्याण भाव व आध्यात्मिक समर्पण हैं।
  • विशुद्धि चक्र वाणी में प्रभाव देता है यह आत्मा की अभिव्यक्ति, भवनात्मक स्वतंत्रता, संप्रेषण और आध्यात्मिक रूप से सुरक्षा की भावना को नियंत्रित करता है।
  • जब कुंडलिनी आज्ञा चक्र का भेदन कर लेती है तो साधक को स्व-ज्ञान हो जाता है उसे परम आनंद का अनुभव होने लगता है, आज्ञा चक्र का संबंध चेतना के साथ सहज ज्ञान के स्तर से जुड़ा होना है।
  • कुंडलिनी साधना के अंतिम  चक्र सहस्त्रार चक्र आंतरिक आत्मा और परमात्मा को एक करने वाला केंद्र है। दिव्यता की भावना के साथ यह चक्र परमात्मा से जोड़ने का काम करता है। 
कुंडलिनी का चक्रों को भेदन

कुण्लिनी योग साधना की सावधानियां – कुंडलिनी योग जितना लाभदायक है उतना ही हानिकारक भी है। बिना उपयुक्त माहौल, बिना परामर्श अथवा मार्गदर्शन के कुंडलिनी साधना करना घातक सिद्ध हो सकता हैं। कुंडलिनी को न्यूक्लियर एनर्जी की तरह कहा गया है विनाश की संभावनाएं हमेशा इसके साथ मौजूद रहती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की इसका अभ्यास नहीं किया जाना चाहिए लेकिन केवल किताबों अथवा इंटरनेट पर मौजूद सामग्रियों के आधार पर कुंडलिनी साधना करना गलत होगा और इससे वांछित परिणाम नहीं मिल सकेंगे। इसकी जगह की मार्गदर्शक अथवा प्रशिक्षक के प्रशिक्षण में कुंडलिनी साधना करना लाभदायक होगी। 

7 माइक्रो आदते जो आपका जीवन बदल देंगी सिर्फ 5 मिनट्स में 

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हम हर साल कुछ न कुछ resolution लेते हैं, और सबकी तरह आपने भी लिया होगा. जैसे कि इस साल मुझे एकदम healthy डाइट फॉलो करनी है, इतना पैसा mutual fund में डालना ही डालना है, instagram पर रील्स कम देखनी हैं या और भी बहुत कुछ. 

पर सवाल ये है कि 3 महीने गुजरते गुजरते हम कितने टारगेट्स को अचीव कर पाते हैं या ऐसे कितने ही resolution लेकर हमने कुछ चीजे करनी शुरू की थी वो अभी भी कर रहे हैं. शायद बहुत कम. 

resolutions या माइक्रो आदते

पर ऐसा हो क्यूँ रहा है? हमने जो प्लान किया था वो हो क्यूँ नहीं पा रहा. न्यू इयर के टाइम पर या एग्जाम के रिजल्ट ख़राब आने के बाद जब सोचा था, तब तो काफी उम्मीदे थी. 

इसका एक कारण ये हो सकता है कि शायद ये सब resolution काफी मुश्किल थे या इनमे क्लैरिटी कम थी जिन्हें थोडा busy या hectic दिन में हम continue नहीं कर पाए. 

इसका एक solution ये है कि हम अपने targets को और ज्यादा specific करें, और ज्यादा clear करें. जैसे कि इसकी एक जानी मानी टेक्नीक है कि उसमे कितना, कब और कैसे जोड़ दें यानी कि when, where और how.

और इन resolutions को छोटी छोटी माइक्रो हैबिट्स में ब्रेक कर लें. 

जैसे कि आपने resolution लिया कि आप लिफ्ट का इस्तेमाल नहीं करेंगे. अपने आप पर इतना कठोर न बने और एक माइक्रो हैबिट डेवेलोप करे कि जिस फ्लोर पर आपको उतरना हो उसके एक फ्लोर पहले उतर जाऊंगा या जाउंगी और आखिरी फ्लोर को सीढियों से चढ़ें. 

माइक्रो आदते

इतना होने पर आप प्लान कर सकते हैं कि आप even dates पर दो फ्लोर चढ़ेंगे. आप देखेंगे कि छोटे चैलेंज लेना आसान तो है ही और उनके पूरे होने की probability ज्यादा है. 

आइये देखते हैं कि और ऐसी कौन सी माइक्रो हैबिट्स हैं जिन्हें आप अपनी लाइफ में 5 मिनट में ही अपना सकते हैं. 

खाना खाते समय No स्क्रीन रूल 

आज आप किसी भी restaurant में इंटर करेंगे तो पाएंगे कि बहुत से लोग अपने फ़ोन में लगे हुए हैं, यहाँ तक कि अपने घर पर भी खाना खाते हुए netflix या कोई टीवी प्रोग्राम देखते हैं रहते हैं. या फिर लोग इतने ज्यादा busy हैं कि वो अपने खाने के टाइम को unproductive मानते हैं और उस पर टाइम लगाना टाइम वेस्ट करना समझते हैं और उस टाइम पर कुछ न कुछ करना चाहते हैं. होता क्या है, कि इलेक्ट्रॉनिक device पर ध्यान लगाने से खाना ज्यादा खाया जाता है और हमे पता भी नहीं चलता और ओवर ईटिंग की आदत होने लगती हैं. 

No स्क्रीन रूल 

रूम में स्क्रीन न होने से, आप consciously अपना खाना और खाने के अमाउंट choose कर पाएंगे और बेहतर हैबिट्स के साथ साथ अपने फ्रेंड्स और family के साथ ज्यादा क्वालिटी टाइम बिता पायेंगे. 

1 minute 1 bathroom break rule 

यह रूल भी मैंने एक आर्टिकल में पढ़ा जो कि आपसे शेयर करने लायक है. इस रूल के अंतर्गत जब भी आप को वाशरूम जाना होता है, उसके तो एक मिनट के लिए फिजिकल एक्टिविटी करना है. सिंपल स्ट्रेचिंग, कोई योग का स्टेप, जम्पिंग जैक या पुश अप ही क्यूँ न हो. सिचुएशन के अनुसार आप 1 मिनट अपनी हेल्थ को दीजिये. 

यहाँ तक कि आप वाशरूम तक आते जाते भी शोल्डर को घुमाना, डीप ब्रीथिंग लाइट एक्सरसाइज भी कर सकते हैं. 

हर कॉल के बाद पानी पीना 

आप ये आर्टिकल पढ़ रहे हैं तो इतना माना जा सकता है कि अपनी बॉडी को हाइड्रेटेड रखना कितना जरुरी है, ये आप जानते ही होंगे. पर जैसा कि बताया जाता है कि दिन में १० गिलास पानी पीना चाहिए वो हो पाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है. 

हर कॉल के बाद पानी पीना

इस टारगेट को पूरा तभी कर सकते हैं जब आप तब भी थोडा पानी पिए जब आपको प्यास न भी लगी हो. Example के तौर पर आपका काम इस तरह का है जिसमे आपको काफी कॉल्स लेनी होती हैं, तो आप हर कॉल के बाद एक घूँट पानी पी सकते हैं, या जैसे मै इस आर्टिकल को लिखते हुए हर पैराग्राफ पर एक घूँट पानी पी रहा हूँ. 

10 सेकंड्स रूल कोई सवाल पूछने से पहले

कई बार आपने लोगो को बोलते हुए सुना होगा कि ‘स्लिप ऑफ़ टंग’ हो गया, यानी कि बोलना कुछ छह रहे थे पर बोल कुछ और गए. और उसके बाद होता है embarrassment और पछतावा, कि ये तो बोलने कि जरुरत ही नहीं थी. 

10 सेकंड्स  रूल कोई सवाल पूछने से पहले

तो मन में कुछ भी अनाप शनाप आने पर तुरंत उस बात को बोलना कई बार भारी पड़ सकता है. इस तरह कि सिचुएशन से बचने के लिए आप 10 सेकंड रूल अपना सकते हैं. इसमें question को पूछने से पहले आपको 10 सेकंड्स तक एनालाइज करना है कि वो सवाल सच में पूछने लायक है क्या? क्या आप उसका उत्तर पहले से ही जानते हैं क्या? अगर जवाब हाँ है तो बिलकुल पूछिए पर अगर जवाब न है तो अपने आप को रोक लीजिये, ट्रेन अभी छूटी नहीं है. 10 सेकंड्स कि जगह आप अपने मन में 10 तक काउंट भी कर सकते हैं. 

सुबह उठ कर अपना बेड तैयार करना

बहुत से लोगो को सुबह उठ कर सबसे पहले चाय चाहिए होती है या फिर अपना फ़ोन चेक करना होता है. बेड को समेटना सुबह सुबह बहुत बोरिंग काम लगता है. लेकिन इसके पीछे काफी गहरी साइकोलॉजी छिपी है. मानिए आपका दिन काफी ख़राब गया, उस दिन कुछ भी अच्छा नहीं हुआ और रात में आप थके हुए घर आते हो. और अपना ख़राब बेड देखते हो. आपको सोने से पहले ही विश्वास हो जायेगा कि सच में दिन अच्छा नहीं था. लेकिन एक अच्छे से लगे हुए बेड से देखकर आपको शायद ऐसा लगता कि कुछ तो है जो आज ठीक है. 

सुबह उठ कर अपना बेड तैयार करना

लॉजिक यह है लाइफ में व्यवस्थित होने की journey आपके दिमाग से शुरू होती है कि ये एक ऐसी माइक्रो हैबिट है जिससे आप दिन कि शुरुआत एक अच्छे नोट पर कर सकते हैं. 

1 hour notification रूल

अभी हम लोगो के फ़ोन में बहुत सारे apps हो गए हैं और सोशल मीडिया जैसे कि whatsapp, फेसबुक, instagram आपको engage करने के लिए दुनिया भर की अपडेट और notification भेजता रहता है. जिससे की आपका mind हमेशा distracted रहता है और आप फोकस न करने की वजह से प्रोडक्टिविटी कम हो जाती है. 

1 hour notification रूल

1 hour रूल यह कहता है कि आप काम करते समय अपने notification को म्यूट करके रखिये. और सभी mail, whatsapp मेसेज, text मेसेज का रिप्लाई एक साथ कीजिये. आप पाएंगे कि आप ज्यादा फोकस्ड और ज्यादा व्यवस्थित हैं. 

जादू की पुड़िया

जी हाँ, इस हैक के लिए आपको छोटा जिपर पैक चाहिये होगा. हम में से बहुत से लोगो का ये resolution होगा की जंक कम से कम खाना हैं और healthy फ़ूड को जंक फ़ूड के पर प्रायोरिटी देनी है. पर जब हमे भूख लगती है, तो हम फोकस नहीं कर पाते और उस समय जो भी available हो जाए वो खा लेते हैं, चाहे वो आपकी planned कैलोरीज से ज्यादा ही क्यूँ न हो. 

6 जादू की पुड़िया

Example के लिए एक समोसे की कैलोरीज बर्न करने के लिए आपको 2.4 km दौड़ना पड़ेगा और समोसे की न्यूट्रीशन वैल्यू कम होती है. वहीँ आप अगर अपनी जादू की पुड़िया यानी जिपर बैग में कुछ ड्राई फ्रूट्स लेके चलते हो तो आप उन्हें खा सकते हैं. ये healthy आप्शन है और आपकी बॉडी के न्यूट्रीशन जैसे की प्रोटीन की जरुरत को मेन्टेन रखता है. 

तो इन माइक्रो हैबिट्स के बारे में क्या सोचना है आपका ? और क्या आपकी भी कोई ऐसी माइक्रो हैबिट है जिससे आपको अपने आपको improve करने में फायदा हुआ है. तो शेयर करिए हमसे कमेंट सेक्शन में .