Thursday, December 7, 2023
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अष्टांग योग का परिचय ( Introduction of Asthnag yoga )

 विद्या के जनक और पितामह कहे जाने वाले आचार्य महर्षि पतंजलि ने योग को सबसे व्यावहारिक रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने मन की चंचलता को स्थिर करने की तकनीक के रूप में योग की संज्ञा दी है। पतंजल‍ि ने योग की समस्त विद्याओं को आठ अंगों में श्रेणीबद्ध कर दिया है। इसे ही अष्टांग योग अथवा राजयोग के नाम से जाना जाता है। संस्कृत में “अष्ट + अंग” अष्टांग है। “अष्ट” का अर्थ है आठ और “अंग” अंग है। इनमे आसन, प्राणायाम, धारणा, ध्यान और समाधि या यम और नियम का वर्णन पतंजलि ने अपने संस्कृत सूत्रों (छंदों) में व्यवस्थित रूप से किया है। 

आष्टांग योग का इतिहास (History of Ashtang yoga) 

पूर्व वैदिक दर्शन में वर्णित योग की जड़ें लगभग 5000 वर्ष ईसा पूर्व मानी जाती हैं। पतंजलि ऋषि ने अपनी पुस्तक पतंजल योग सूत्र में अष्टांग योग मार्ग की रचना करते हुए योग को व्यावहारिक जीवन से जोड़ा। जिसमें उन्होंने योग को अष्टांग या अष्टांग मार्ग के रूप में सूत्रबद्ध किया है। गौतम बुध्द ने भी मोक्ष का जो आष्टांगिक मार्ग बताया हैं जिनमें योगसूत्र के ही आठ अंगों का वर्णन है। 

अष्टांग योग के आठ अंग (Eight limbs  of Ashtang yoga)

(1) यम (संयम/सिद्धांत)

यह अष्टांग योग का पहला चरण है।  इसके अंतर्गत पांच सिद्धांतों का अनुशरण करना होता है-

  • अहिंसा – अपने कार्यों और विचारों से किसी की भी हानि नहीं करने का भाव रखना। 
  • सत्य – जनमानस के कल्याण की भावना के साथ जो जैसा सुना अथवा देखा गया है कहना ही सत्य है। 
  • अस्तेय – पराई चीज़ों को उनके मालिक की आज्ञा के बिना न लेना अथवा चोरी न करना। 
  • ब्रह्मचर्य – अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना और उन पर निरंतरता बनाये रखना। 
  • अपरिगाह – वस्तु का आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना साथ ही दूसरों की वस्तुओं की इच्छा न करना। 

 (2)नियम

आत्म अनुशासन से सम्बन्धित इस चरण में भी पाँच सिद्धांतों को अपनाना होता है-

  • शौच – साधक को अपना शरीर और मन को शुध्द करना।
  • संतोष – किसी भी चीज़ की इच्छा की अनुभूति न रखके संतुष्ट और प्रसन्नता का भाव रखना। 
  • तप – सुख-दुःख किसी भी परिस्थिति में समभाव रखते हुए मन और शरीर को तापना। 
  • स्वाध्याय – खुद को पहचानने, मन में झाँकने ले लिए आत्मचिंतन करना और अपनी कमियों को स्वयं ही दूर करना। अपने विचारों को शुद्ध करने के साथ ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रयास करना। 
  • ईश्वर – पूर्ण समर्पण और श्रद्धा के साथ स्व को ईश्वर को सौंप देना। 

(3)आसन (योग मुद्राये)

तीसरा अंग में साधक अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विभिन्न आसन करता है इसके लिए साधक सुखासन, पद्मासन, या ज्ञान मुद्रा में बैठ सकता है। मह्रिषि पतंजलि ने आसन को स्थिर और सुखपूर्वक बैठने की क्रिया कहा है। लेकिन इसे करने के लिए साधक को यम और नियम के सिद्धांतों का अनिवार्य रूप से पालन लिया जाना आवश्यक होता है। 

(4) प्राणायाम 

श्वासों पर नियमन, नियंत्रण करते हुए सम्यक भाव से साँस लेने और छोड़ने पर ध्यान केंद्रित करना। यह साधक के मन की चंचलता को स्थिर करने और एकाग्र करने में सहायक होता है। इसके अंतरगत कपालभाति, अनुलोम -विलोम अथवा आनापान के माध्यम में साधक ध्यान केंद्रित करते हैं।

(5)प्रत्याहार

इन्द्रियों को अंतरमुखी करके उन पर नियंत्रण कर लेना ही प्रत्याहार कहलाता है। प्रत्याहार के अंतरगत बाहरी विषयों, भोग विलासों से अपने मन को हटा कर एकाग्र करके अपनी इन्द्रियों को अंतरात्मा की और बिमुख करके साधक अपने मन और शरीर पर विजय प्राप्त कर लेता है।  

(6)धारणा (एकग्रता)

अष्टांग योग के पूर्व अंगों के सिद्धांतों का अनुशरण करके साधक का शरीर शुद्ध और स्वश्थ हो जाता है मन और इन्द्रियाँ सम्यक अवस्था में आ जाती है। धारणा के तहत चित्त को ध्यैय में लगाने के लिए साधक परमात्मा के सगुण अथवा निर्गुण रूप की प्राप्ति के लिए नित नियमित आहार-विहार के साथ श्रद्धा पूर्वक अभ्यास करता है। 

(7) ध्यान (साधना)

भूत-भविष्य से परे वर्तमान में जीना ही ध्यान की अवस्था कहा जाता है। इसके हेतु साधक मन को स्थिर करके, किसी चीज़ को स्मरित करके, अपने मन को उसी दिशा में एकाग्र करता है जब साधक पूर्ण ध्यान की अवस्था में पहुंच जाता है तब उसे किसी भी भाव, वस्तु, विचार आदि का ज्ञान नहीं होता है। 

(8)समाधि (मोक्ष)

समाधी मोक्ष की अवस्था को कहते है। पूर्ण ब्रम्ह को प्राप्त कर लेना ही इस चरण का धोतक होता है। इस चरण में साधक को पूर्ण परमानन्द की अनुभूति होती है. साधक निरंतर घ्यान से मन और आत्मा में ध्यान लगा अपने शरीर में जड़त्व को छोड़ शून्यता को प्राप्त कर लेता है. इस अवस्था से साधक सुख-दुःख, राग-द्वेष से परे विपश्यना को प्राप्त कर लेता है.

अष्टांग योग के फायदे (benefits of ashtanga yoga)

१. अष्टांग योग पुरे शरीर को स्वस्थ बनाता है यह साधक को कई बिमारियों से बचाता है. 

२. मानसिक स्वास्थ के लिए अष्टांग योग बेहद प्रभावकारी है यह एंग्जायटी, डिप्रेशन जैसे विकारों से निजाद दिलाता है. 

३. योग के द्वारा रक्त प्रवाह पुरे शरीर में निरंतर बना रहता है. जिससे शरीर में चुस्ती और स्फूर्ति बनी रहती है. 

४. प्राणायाम करने से तंत्रिका तंत्र की क्रिया बेहतर होती है जिसे अस्थमा, दमा जैसे रोगों से छुटकारा मिलता है.

५. आष्टांग योग से साधक को जीवन में तनाव से मुक्ति मिलती है एवं जीवन में सकारात्मकता रहती है.

६. चेहरे पर कांतिमय सौंदर्य प्राप्त होता है.

७. दैनिक व्यव्हार के कार्यों में एकाग्रता रहने से उत्पादक क्षमता बेहतर होती है एवं सामाजिक जीवन बेहतर होता है.

८. नियमित रूप से योग करने से वृद्धावस्था में भी शारीरिक संतुलन बना रहता है.

९. अष्टांग योग से प्रतिरक्षा तंत्र की प्रणाली की कार्यक्षमता बढ़ जाती है, जिससे हमारा शरीर रोगों से बेहतर तरह से लड़ सकता है.

१०. आष्टांग योग नियमित करने से शरीर अधिक लचीला हो जाता है.

११. जीवन में उमंग बनी रहती है. एवं मनुष्यों में नैतिक मूल्यों का विकास होता है.

१२. यह मनुष्य को श्रेष्ट जीवन जीने की भावना देने के साथ परमात्मा से मिलन का मार्ग प्रशस्थ करता है.

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