Friday, June 9, 2023
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वात पित्त कफ दोष क्या है? कैसे कंट्रोल करें?

अपनी रोजमर्रा की lifestyle में हम जो भी खाद्यपदार्थ (food ) खाते है उनकी अपनी-अपनी तासीर होती है जिसमे कुछ ठन्डे प्रवत्ति के होते है, कुछ गर्म प्रवत्ति के जबकि कुछ सामान्य प्रवत्ति के। ये हमारी शरीर में जाकर अपनी तासीर के अनुसार ही हमारी body को effect  करते है। उदाहरण के लिए जैसे जब हम संतरा खाते है तो उसके तासीर ठंडी होती है इसलिए वह हमारी बॉडी में ठंडक प्रदान करती है। वहीँ जला-भुना खाने से हमारे शरीर में heat (ऊष्मा) पैदा होती है क्यूंकि उसकी तासीर गर्म होती है। ठीक इसी तरह आयुर्वेद के मुताबिक मानव शरीर की भी तीन तासीर होती है जिन्हे वात, पित्त और कफ के नाम से हम जानते है। इन्हे त्रिदोष भी कहा जाता है।

वात- पित्त- कफ दोष

त्रिदोषो का पञ्च तंत्व से सम्बन्ध 

ऐसा कहा जाता है की ये दोष हमारे शरीर के पांच तत्वों (five elements) – पृथ्वी, जल, भूमि, आकाश, वायु से बनते है। आयुर्वेद के अनुसार जब यह दोष हमारी बॉडी में संतुलित अवस्था (balanced way) में होते है तो हमारा शरीर स्वस्थ होता है लेकिन जब अपनी आहार (food), जीवन शैली (lifestyle), के कारण कोई भी दोष अपनी मात्रा से ज्यादा या कम हो जाता है तो हमारे शरीर में विकार पैदा हो जाते है और हम बीमार हो जाते हैं.

त्रिदोषो का पञ्च तंत्व से सम्बन्ध

लेकिन आयुर्वेद का सिद्धांत ही हैं कि ‘रोगी होकर चिकित्सा करने से अच्छा हैं कि रोगी हुआ ही न जाए इस बारे में आयुर्वेद की के ग्रंथों में कहा गया हैं कि –

  ‘‘वमनं कफनाशाय वातनाशाय मर्दनम्। शयनं पित्तनाशाय ज्वरनाशाय लघ्डनम्।।

 अर्थात् कफनाश करने के लिए वमन (उलटी), वातरोग में मर्दन (मालिश), पित्त नाश के शयन तथा ज्वर में लंघन (उपवास) करना चाहिए। लेकिन फिर भी अपने बुरे खानपान और रहन सहन के कारण अगर हम कैसे बीमार हो जाए तो हम कैसे इन दोषों के आधार पर हम खुद को स्वस्थ कर सकते हैं आइये जानते हैं 

वात दोष 

पंच तत्वों में जब हमारे शरीर में वायु और आकाश की मात्रा अधिक हो जाती है तो शरीर में वात दोष पाया जाता है।  वात दोष को बेहद प्रभावशाली माना गया है क्यूंकि हमारे आंतरिक शरीर में रिक्त स्थानों पर वायु ही रहती है। वात शरीर में रक्त संचार (blood flow) सुचारु करने में काम आता है। वात कि अधिकता के कारण पुराने रोग और विकार और बढ़ जाते है। आयुर्वेद के मुताबिक अकेले वात दोष के कारण शरीर को 80 से अधिक रोग हो सकते है।  

वात दोष 

वात दोष का मुख्य केंद्र पेट और कोलन (colon) होता है इसके साथ पेट के निचले भाग, दोनों छोटी-बड़ी आतों, कमर, टांग इत्यादि वात के मुख्य स्थान है। वात युक्त शरीर सामान्यतः दुबला-पतला, मेटबॉलिज़म अच्छा, आवाज़ भारी, नब्ज़ तेज़, और नींद में कमी होती हैं। ऐसे लोग जिनमे वात दोष की अधिकता होती हैं 

खानपान/डाइट

उनको फल, सब्जियों का रस, दुग्ध उत्पाद, फलियां (beans), काजू-बादाम खाने की सलाह दी जाती हैं।

व्यायाम

Lunges, Squats , Low-intesity exercise, और yoga वात पित्त में लाभकारी होता हैं। 

पित्त दोष

आयुर्वेद के अनुसार पित्तदोष शरीर में अग्नि की प्रधानता होती हैं। यह हमारे शरीर के हार्मोन्स और एंजाइम से सम्बन्धित होता है।  शरीर  में पित्त दोष का मुख्य लक्षण हैं पाचन में गड़बड़ी। ऐसे लोगो को acidity, constipation जैसी समस्याएं होती हैं। गर्मी की प्रधानता के कारण पित्त प्रवति के लोगो को गर्मी अधिक लगती हैं, इनका शरीर माध्यम कद-काठी का होता हैं इनमे नींद, भूख और कामेच्छा अधिक होती हैं। जीवन के मध्यकाल में याने युवावस्था और प्रौढ़अवस्था के समय पित्त दोष अधिक होता है। 

पित्त दोष

खान-पान/डाइट

पित्त दोष में मौसमी फल, आम, खीरा, तरबूज, हरी सब्जियां खाने के साथ जला-भुना, नमकीन -मसालेदार फ्राई खाने से परहेज की सलाह दी जाती हैं जिससे शरीर में पित्त दोष अधिक न हो।

व्यायाम

Yin yoga, Pilates, Swimming, Walking ,और  jogging  के साथ  मध्यम गति और मध्यम इंटेसिटी वाले एक्सरसाइज करने से पित्त की अधिकता नियंत्रण में रहती हैं। 

कफ दोष

आयुर्वेद के अनुसार कफ दोष वाले शरीर में पंच तत्वों के जल और पृथ्वी की अधिकता होती हैं। रोगप्रतिरोधक क्षमता और ऊतकीय- कोशिकीय प्रक्रियाओं को स्वस्थ रखना संतुलित कफ का काम हैं। कफ का मुख्य केंद्र छाती- पेट और आसपास होता हैं। कफ दोष के स्वामियों का शरीर मजबूत किन्तु आलसी होता हैं। किशोरावस्था में यह दोष बाकी जीवन काल की अपेक्षा अधिक प्रबल होता हैं। 

कफ दोष

खानपान/डाइट

पौष्टिक भोजन, फल का सेवन करना कफ युक्त शरीर के लिए फायदेमंद होता हैं जबकि कफ दोष की प्रधानता वाले शरीर को ऑयली और हैवी खाने से परहेज करना चाहिए।

व्यायाम

Tabata, HIIT, Plyometrics,Dance , Zumba और cardio एक्सरसाइज कफ दोष के लिए बेहतर होती हैं. 

आयुर्वेद में इन्ही दोषों के basis पर रोगों का इलाज किया जाता हैं जहाँ दवाइयों के साथ रोगी को खानपान, रहन-सहन, नियमित व्यायाम करने का परामर्श दिया जाता हैं। 

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